हिंदी कविता - कौन है जो मेरी बात सुने

कौन है जो मेरी बात सुने


कौन है जो मेरी बात सुने,
मौन है जो मेरी बात सुने.

जीवन के दीये में आत्मा की बाती,
एकाकी रह ही नहीं पाती.
अँधेरे, उजाले को चीर कर,
जलता रहता हूँ मैं,
चाँद रात मुझे तकता है
अपनी चांदनी की ठंडक से
सहलाता बहलाता है .

संसार की तमाम रोशनियाँ
जिसके आगे फीकी..
उसने मेरे सौभाग्य की किरण नहीं फेंकी .

सूरज का अगाध प्रकाश
कभी जब तक उम्मीद बंधाता,
अस्त हो जाता है -
यात्री चलता रह जाता है.

कौन है जो मेरी बात सुने,
मौन है जो मेरी बात सुने.


निस्तभ्ध दरख़्त जलाशय सुमन,
शाम का धुंधलका,
घरों को लौटते लोग,
आँखों में उल्लास,
अपनों के पास,
बागों में अपनों के बीच
निडर, पुलकित, शिशु-शावक भांति
करते किल्लोल,
हे प्रकृति, प्रभुकृति, तू ही मुझसे कुछ बोल.


कौन है जो मेरी बात सुने,
मौन है जो मेरी बात सुने.


भौतिकता का आवरण चारों ऑर
मौलिकता का नहीं ऑर - छोर,
निन्यानबे का फेर, अंतहीन,
सौ को होते, देखा नहीं.
अपनों को अपनों के खंजर
बस अवसर की ताक में,
राख हूँ किसी की आँख में.


आ ज़िन्दगी मुझे भस्म की तरह धारण कर
मुझे अपनी ललाट की शोभा बना,
मेरे साथ तप कर, की बन सकें हम पूरक
अपनी कमियों खुशियों की,
और प्राप्त हों उस सीमा को,
जो संबंधों में अनंतिम हो.

मेरा स्वर दूर हवा में विलीन हो गया..
मैं बहुप्रतीक्षित रह गया -
अपने आप में.

कौन है जो मेरी बात सुने,
मौन है जो मेरी बात सुने.

http://www.anubhuti-hindi.org/nayihawa/s/sitesh_shrivastav/kaun_hai.htm

[जब बचपन युवावस्था के रास्ते पर चल पड़ता है तब कहते हैं जवानी की ताक़त खुद बा खुद उसे रास्ता दिखाती है. पर रास्ते की परख करना और रास्ते के अगले छोर पर क्या मिलेगा, इस बात को बताने वाला भी कोई चाहिए. जो ऐसा कोई न मिले तो कोई भी रास्ता अपना सा लगता है. ऐसे ही किसी रास्ते पर चल पड़ा था मैं कभी.
खुद का रास्ता सदा वीरान रास्ता होता है. वीरान रास्ते पर स्वयं से बात होती है और स्वान्तः सुखाय का मतलब पता चलता है. इसी रास्ते पर खुद से की गई बातचीत की एक झलकी है ये कविता. आज भी ताज़ा है यह मुझमे!]

4 comments:

  1. Gr8.. kya kahu? Ek ubharta hua kavi?

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  2. munish sharma munishontop@gmail.com
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    hindi_sabha_japan@
    प्रिय सीतेश,

    अरे ऐसा क्या ? कविता नो डाउट बेहतरीन है लेकिन जनता से शिकायत बेकार है , लोग तो ऐसे ही हैं ...एकला चलो रे, खुद से ही बतियाते । अच्छा अब मेरी एक रचना सुनो --

    ब्लौगिए से ब्लौगिए मिले कर-कर लंबे हाथ , लोग सुनें तो ठीक है भैया वरना मार घुमा के लात ।


    सप्रेम--
    मुनीश.
    ......................
    Rohan Agrawal
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    hindi_sabha_japan@
    वाह वाह वाह!
    सभी गुणि कवियों से विनम्र अनुरोध हे की कृपया कोई फटाकेदार कविता "पतंग" पर लिखे और साझा करे!
    इस जापानी ठण्ड में तो आपकी गुणवान कलम से ही पतंग उड़ा सकेंगे:-)

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  3. Rohan Agrawal
    through
    hindi_sabha_japan@
    वाह वाह वाह!
    सभी गुणि कवियों से विनम्र अनुरोध हे की कृपया कोई फटाकेदार कविता "पतंग" पर लिखे और साझा करे!
    इस जापानी ठण्ड में तो आपकी गुणवान कलम से ही पतंग उड़ा सकेंगे:-)
    munish sharma munishontop@gmail.com
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    to hindi_sabha_japan@
    शेर अर्ज़ है--
    अमाँ मियाँ ख़लील उड़ाया करते थे फ़ाख़्ता और हम उड़ाते थे पतंग,
    मग़र ये उन दिनों की बात है जब हम हुआ करते थे यंग

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