हिंदी कविता - सौंदर्य का आकर्षण

 सौंदर्य का आकर्षण


बाह्य सौंदर्य का आकर्षण
तो ईश्वर की कला है
क्योंकि केवल ईश्वर ही गढ़ सकता है
वो बेमिसाल मूर्तियाँ
जो नसीब वालों को मिलती हैं.

परमेश्वर के उत्क्रिस्टतम सांचे
जिन्हें ढाले वो क्या बांचे
स्वयं की सुन्दरता;
उसका तन जो सुन्दर है.
मन तो बाद में आएगा
जिसको कोई एक मिला
क्या अधूरा ना रह जायेगा?
और मन तो बदल सकते हो
तन बदल पाओगे?
मर जाओगे
तभी नया पाओगे.

अतः बाह्य सौंदर्य का महत्व
ना कम कर -
सफल नहीं होगा..
आनंद तभी होगा जब
तन सुन्दर  -  मन सुन्दरतम होगा.

..................इति.......................
[सुन्दरता को हिंदुस्तान में दो भागों में बाँट दिया गया है - तन की सुन्दरता और मन की सुन्दरता.
यूँ तो 'मन की सुन्दरता' की वकालत सभी करते हैं पर मन ही मन विचलित रहते हैं की काश किसी भी पसंदीदा, चश्म्दीदा, और रहस्य-दीदा मॉडल जैसा तन भी होता तो क्या बात होती. हिंदी प्रान्तों में एक कहावत भी है "मन मन भावे मुड़िया हिलावे"

मैंने सोचा की क्यूँ किसी एक की कामना की जाए, क्यूँ नहीं दोनों की अपेक्षा की जाए. और फिर किसी भी एक की बुराई क्यूँ? जब इंसान को दोनों हासिल हैं तो दोनों में कुछ तो खूबियाँ होंगी. दोनों को हासिल करने का ये सन्देश भी है और प्रयास भी. तन और मन, दोनों की सुन्दरता का एक सा महत्व है और एक सी आवश्यकता. १९९९ की मुंबई में सपनों को तलाशते हुए भावनाओ की ठेस खायी और इस रचना की उत्पत्ति हुई.]

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