हिंदी कविता - एक नौसिखिये की पहल

साल १९८८
सोविएत रूस ने पेरेस्त्रोइका, यानि वित्तीय पुनर्गठन / वित्तीय नवीनीकरण लागू कर दिया था। किसे पता था कि ये उनके देश का ही पुनर्गठन / नवीनीकरण कर बैठेगा। रूस के भूमंडल के नीचे भारत में करिश्माई युवा प्रधानमंत्री राजीव गाँधी अपने जीवन कि निर्णायक लड़ाई लड़ रहे थे - बोफोर्स काण्ड; जो कि उस समय तक हिंदुस्तान का सबसे बड़ा भ्रस्ताचार समाचार था। आज के सन्दर्भ में तो वो टुच्चा सा है।

मैं कहीं अपनी सोच को भ्रांतिमान कर रहा था। आगे आने वाली चुनौतियों से आधा बेखबर रहकर असामान्य पेशों के सपने देखता हुआ मैं भटक रहा था कि कहीं अंतर्मन कि सुनसान और ठिठुरने वाली निर्वात खालीपन में ताल और लय कहीं मिल गए। इस तरह उनके मिलन से मेरी प्रारंभिक कवितायेँ जन्मी। मैंने कागज़-कलम को भींचकर पकड़ा और उड़ेल दिया पन्नों पर। आपतक अब पंहुचा रहा हूँ और उम्मीद करता हूँ कि आपकी आलोचना, समालोचना और समीक्षा मिलेगी।



:एक नौसिखिये की पहल:



काव्य करने बैठ गया हूँ
हिम्मत धर के पैठ गया हूँ
जोश में घुस बैठ गया हूँ
पर उफ़ !
कलम की नोंक , हाशिए के बगल में ,
घंटे भर से रुकी है
शब्दों के लिए दुखी है
आह !! मन मेरा हाथ के दबाव में है ,
भावनाओ के बहाव में है ,
ओह !! मस्तिष्क विषय में लीन है ,
काँट- छाँट में तल्लीन है
अरे शब्द जैसे लुट गए है
ज्ञान के घड़े टूट गए है
कुछ भी नहीं सूझ रहा है,
मस्तिष्क व्यर्थ ही झूझ रहा है
अच्छा, सपनो में उतनी जान नहीं है
काव्य करना आसन नहीं है
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