कविता / Poem
 
जीवन का उत्तरार्ध और दक्षिणी गोलार्ध
        (जनवरी 2015, जोहानसबर्ग, साउथ अफ्रीका)
 
जीवन का उत्तरार्ध और दक्षिणी गोलार्ध 
जुड़ाव है समन्दरों का ज़मीनों का 
हवा की कड़ी जुडी  बहती सभी धराओं पर 
चाँद सूरज सबके बराबर के हिस्से हैं 
ह्रदय को दूरी फिर क्यूँ कचोटती है 
दिल दहलीज़ फिर फिर क्यूँ देखता है 

जीवन का उत्तरार्ध और दक्षिणी गोलार्ध

दक्षिण से उत्तर निगाह तक नहीं जाती 
उत्तर से उत्तर  क्या कर आ पायेगा ?
पश्चिम से पूरब सोच भी डगमगाती 
पूरब से पूर्वा क्या बह आ पाएगी ?
ह्रदय की पहुँच को आँखों का वास्ता 
पैरों की बेड़ी पर फिर यादों को रास्ता 

जीवन का उत्तरार्ध और दक्षिणी गोलार्ध


बादल मिलते मिलते से लगते हैं
हवा जब नाराज़ हो हो बहती है 
चाँद चेहरे की रंगत पढ़ लेता है 
झनक पटक वर्षा फिर मान जाती है 
खेल जब होता यही  हर  कहीं
मेल नहीं होता क्यूँ कहीं कहीं 

जीवन का उत्तरार्ध और दक्षिणी गोलार्ध

                  -  सीतेश श्रीवास्तव 

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