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हिंदी कविता - द्वन्द




द्वन्द





मै तुम्हारा हूँ - इसका माँगा है
प्रमाण तुमने - नित्य नवीन
कैसे बोलूं वह भाषा असीम?
प्रेम तो व्याख्या रहित है.
शब्दों से उसे नाप नहीं पाउँगा..
नयन अभिव्यक्ति नहीं कर पाएंगे
शारीर कभी ना कभी ठंडा हो जायेगा,
और रह जायेगा प्रश्न यथा का यथा..
नित्य नवीन प्रमाण कि व्यथा.

अन्यथा क्या तुम्हारा ना रहूँगा?
प्रेम जल तुम्हें छल जायेगा?
या अग्नि में सपना तुम्हारा जल जायेगा?

वस्तुतः प्रेम मात्र भ्रम है,
मायावी है - छलावों का क्रम है.
प्रेम पाश है - उसकी तलाश है
जो कभी नहीं मिलता;
जहाँ चाहो वहां नहीं मिलता,
जहाँ मिलता है वहां अपनाया नहीं जाता.

धिक्कार है विधाता बता,
यह जीवन किस प्रयोजन
ना निगलते बने ना उगलते.
मुगालते में प्रेम के सुलगते;
रहे अब और कितना ??
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मुंबई में नयी रंगीन दुनिया कि तलाश में १९९८ में कदम रखे थे. मुंबई पहले पहल डराती धमकाती है, और जांचती है कि उसके प्रेम में कितनी शिद्दत है. फिर जकड लेती है अपनी बाहों के घेरे में. वो घेरे जिनके अन्दर प्यार भी है और प्यास भी.
प्यार और प्यास के उस अनबुझ वर्ष में कलम ने वो मोम उगला जो दिल में पिघला था. वह अब तक बहता है.
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