Career is like rocket or special launch vehicle

क्या से क्या हो गया ~~

नौकरी करते करते हम यूँ हो गए जैसे कि आटा की चक्की !

रोक्केट बनकर शुरुआत की थी कुछ पंद्रह सोलह साल पहले और सोचते थे की कुछ कर दिखायेंगे दुनिया को। कुछ कर दिखाया तो है हमने...

याद आता है एक शेर :
ए मेरे अहबाब क्या कारे नुमाया कर गए...
बी ए हुए , नौकर हुए, पेंसन लिए और मर गए...

याद नहीं ये किसका शेर है पर जिसका भी है बहुत ही सही बैठता है।

रोक्केट के तीन चार भाग होते हैं जो उसे ऊंचाई पर जाने में मदद करते हैं। किसी ख़ास ऊंचाई पर रोक्केट को अपना एक हिस्सा गिरना होता है जिसके बाद ही वो अपनी अगली मुकाम को छु सकता है। करियर में भी ऐसा ही होता है। हर ५/७ साल के अंतर पर हमारे करियर का रोक्केट एक ऐसी ऊंचाई पर पहुच जाता है की बस उसके आगे बढ़ने की ताकत मंद पड़ jआती है। उस समय कितना भी अच्सलेराटर दबाव, रोक्केट ऊपर जाता ही नहीं बस उसी स्थान पर "घुन घुन " करता रहता है।
और अभी बाकी है मेरे दोस्त (शाहरुख़ खान के मुह से चुरा लिया है मैंने ये...)

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