यूँ ज़िन्दगी में मेरे तुम उतर आई हो.
चाँद हकीकत में कोई छू नहीं पाता है
चांदनी बन कर तुम जीवन परछाई हो.
तुम्हे भी मैं कभी छू ना पाऊंगा
तुम शायद प्यार की गहरायी हो.
मुझ जैसे किनारे बैठे मछुआरे ने
जैसे 'गोताखोर की मोती' पायी हो.
एक 'अपना परिवार', जैसे सपना साकार
तुम कहाँ से निकल चली आई हो?
सोचता हूँ किस प्रयास से
तुम मुझ तक पहुच आई हो.
आओ इस ज़िन्दगी का शुक्रिया करें
कि तुम मुझसे मिल आई हो.
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सन २००४, मुंबई के अंतहीन रोमांटिक महीनो में लिखी गयी थी ये - जिसे आप तो
कविता कहेंगे परन्तु मैं कहूँगा दिल की आवाज़.
कुछ बात है कि हिंदुस्तान कि सरज़मीन पर मुंबई जैसा कोई और शहर नहीं, कोई और
दरियादिल जगह नहीं, कोई और मस्ताना नगर नहीं जहाँ किस्मत कर्म का
पीछा करती है. भारत को ३० मुंबई जैसे शहरों की सख्त और तुरंत जरूरत है.
Bahut khoob Sitesh bhai!
ReplyDeleteThanks!!! No Compliment can ever match this....
ReplyDeletemunish sharma
ReplyDeletevia
hindi_sabha_japan@
जी हाँ बड़ी-बड़ी हस्तियों ने मुंबई की तारीफ़ में हमेशा कुछ ना कुछ कहा है लेकिन जाने क्यों मुझे तो बहुत ही ग़मज़दा लगता है मुंबई शायद इसलिए कि मैं तो एक बार अगस्त के महीने में दो-चार रोज़ के लिए ही था वहाँ । लेकिन इतना तय है कि मैं मुंबई को मैं कभी प्यार नहीं कर सकता , रहना तो दूर । बहरहाल, मैसूर , पूना , चंडीगढ़ , गान्धीनगर , भुवनेश्वर तो ढंग के शहर हैं और कोलकाता ऐसा है जिसे बेढंगा होने पर भी प्यार करने को जी चाहता है ।
--मुनीश
मुनीश जी,
ReplyDeleteमुंबई ग़मज़दा है इस बात में कोई शक नहीं लेकिन सपनो की नगरी एक ही है हिंदुस्तान में ऐसा कहते हैं.
और अगर सपना सच हो जाये तो गम उसकी खूबसूरती में चार चाँद लगा देता है.
मैं कलकत्ता में पैदा हुआ जो भारतीय संस्कृति की दुन्दुभी बजाता था विश्व में कभी. मैं बनारस का हूँ जहाँ शिव-शम्भू स्वयं वास करते कहलाते हैं.
मैं बंगलोर में रहता हूँ जो करीब पिछले एक दशक से हिंदुस्तान का दर्शनीय गहना है.
पर इतने बड़े हमारे देश में सिर्फ एक वित्तीय राजधानी - मुंबई है जो सोचने का विषय है. और हिन्दुस्तान का वित्तीय सिंहासन वहां होने के बावजूद वहां जो cosmopolitan वातावरण है वह अनुकर्णीय और अद्वितीय है. मैं चाहता हूँ कि मुंबई हमारा शंघाई बने ताकि हम पूर्णरुपेन औध्योकिक शक्ति कहला सकें. इसी सन्दर्भ में मैंने लिखा कि हिंदुस्तान को और मुंबई जैसे शहरों कि आवश्यकता है.
- सीतेश
munish sharma munishontop@gmail.com via hindi_sabha_japan@
ReplyDeleteभाई सीतेष जी,
बात पिछले अगस्त की है मैं मुंबई जा रहा था वो भी हिन्दी दिवस के विशेष केबीसी एपिसोड की शूटिंग के सिलसिले में बतौर मेहमान । दिल्ली से उड़ा जहाज़ मुंबई के घरेलू नहीं अंतर्राष्ट्रीय टर्मिनल पे उतरा मौसम की खराबी के चलते । देख के मैंने माथा पीट लिया भारत की आर्थिक राजधानी के हवाई अड्डे के दर्शन कर के । काश बेसिक इंफ्राटक्चर ठीक हो पाए हमारा , ऊपर वाला है पालनहार हमारा ।
--मुनीश