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wheel of existence - Buddhism |
अस्तित्व
सड़क कभी ख़तम नहीं होती
किसी में मिल जाती ही
मनुष्य ख़त्म हो जाता है
किसी से मिल नहीं पाता है
उसकी खोज खाज की तरह
उसे खाती है - डराती है
कि उसका "अस्तित्व" खतरे में सदा
और...
मानव रहता है बंधा - अपने भय से.
भय एक सच है
दो रूप लिए
'मृत्यु' और 'आत्मविश्वास'
देखा है दोनों से लड़ना यहाँ .
मृत्यु से लड़ना जुआ है - तो
आत्मविश्वास से लड़ना - आशा
और आशा का अस्तित्व - निराशा !
सड़क पर गाड़ियों कि कतार
भीड़ की भीड़
ज्वार भाटे की तरह
लपकती लौटती है
रात दिन एक करती
कभी ना थमती है - क्योंकि
'अस्तित्व' का भय सताता है
नींद में भी चैन में भी.
सब दौड़ रहे हैं क्षणिक गंतव्यों तक
नहीं पता अंततोगत्वा कहाँ ...
यह 'नहीं पता' - देता है
जन्म, आजन्म संभावनाओ को
और मैं संभावनाओ का बीज हूँ.
उपायों का आधार
युक्तियों की प्रयोगशाला
ईश्वर से साभार !
मैं मानव हूँ - मिटटी का पुतला
उसी में मिल जाने तक
लड़ता रहूँगा
"अस्तित्व" की लड़ाई
.....................................
(written during 1990s, in the wilderness..)
[जब जवानी दीवानी थी, दिल कि आग पेट की आग के आगे थी, तब दुनिया के संघर्ष छोटे लगते थे. उन दिनों को याद करता हूँ आज के सन्दर्भ में तो लगता है की जवानी के दिनों का भटकाव बिल्कुल आज के समय में वैसा है जैसा भटकाव Internet browsing करते समय होता है - अर्थात मजा तो बहुत आता है, अपने अस्तित्व और योगदान का अहसास तो होता है, सोच और mouse कहाँ का कहाँ पहुच जाता है पर सच्चाई का धरातल वहीँ का वहीँ रहता है. इंच भर भी हिलता नहीं है.
http://www.anubhuti-hindi.org/nayihawa/s/sitesh_shrivastav/astitva.htm ]
munish sharma munishontop@gmail.com
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hindi_sabha_japan@googlegroups.com
बस एक क़दम ग़लत उठ्ठा था राह-ए-शौक़ में
के मंज़िलें तमाम उम्र मुझे ढँूढती ही रहीं
आपकी क़लम में ये कशिश बरक़रार रहे बस यही दुआ करता हूँ उगते सूरज के देश से । आप लिखते रहें और अपने अंतर्मन की ज्वाला से यूँ ही पाठकों का अंधेरा रास्ता रौशन करते रहें , ऐसी कामना है ।
--मुनीश